राजस्थान का नाम आते ही लोगों के जहन में एक तस्वीर उभरती है, यहां के रेतीले धोरे, लेकिन आज हम आपको 33 जिलों की तस्वीरें दिखा रहे हैं। राजस्थान की वो खूबसूरती, जिन्हें निहारते ही आपके मन में उतरी धोरों की छवि भी बदल जाएगी। वर्ल्ड फोटोग्राफी डे के मौके पर देखिए यहां के महल से लेकर ऊंची पहाड़ियों पर बने किले, जहां सूर्य की पहली किरण पड़ती है। साढ़े तीन हजार सीढ़ियों वाली बावड़ी, 100 टापूओं वाला शहर और प्राकृतिक छटाएं बिखेरते जंगलों की वो तस्वीरें, जो सीधे आपके मन में उतर जाएंगी और झलक उठेगा रंग-बिरंगा राजस्थान।
कोटा की मुकुंदरा हिल्स दुनियाभर में राजस्थान की पर्वत शृंखला की पहचान बन चुकी है।
कोटा के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क कोटा शहर से 56 किलोमीटर दूर बूंदी के पास स्थित है। जिसे दर्रा वन्यजीव अभयारण्य के नाम से भी जाना जाता है। यहां विदेशी जानवरों के साथ ही विभिन्न पौधों की प्रजातियों, सांभर हिरण, एशियाई हाथी और एल्क निवास करते हैं। पहले के वक्त यह जगह राजा महाराजाओं के शिकार के लिए पहचानी जाती थी।
प्रियंका चोपड़ा समेत कई सेलिब्रिटीज की शादी हो चुकी है, जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस में।
उम्मेद भवन पैलेस राजस्थान के जोधपुर में स्थित एक बेहद ही शानदार और खूबसूरत महल है। भारत के मध्य काल में निर्मित यह महल अपने इतिहास और बेहतरीन संरचना के लिए पूरे विश्व भर में विख्यात है। जोधपुर में स्थित उम्मेद भवन पैलेस का निर्माण उस समय के महाराजा उम्मेद सिंह ने वर्ष 1929 से शुरू करवाया और यह महल साल 1943 में बनकर पूरा हुआ था। कहा जाता है कि यह महल दुनिया के सबसे बड़े निजी महलों में से एक है। लगभग तीस हजार से भी अधिक लोगों ने दिनरात मेहनत करके इसका निर्माण किया है।
दुनियाभर में जैन संप्रदाय के लोगों की आस्था का केंद्र है रणकपुर का जैन मंदिर।
रणकपुर जैन मंदिर जोधपुर और उदयपुर के बीच में अरावली पर्वत की घाटियों में स्थित है। यह राजस्थान में स्थित जैन धर्म के पांच प्रमुख स्थलों में से एक है। रणकपुर जैन मंदिर खूबसूरती से तराशे गए प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह उदयपुर से 96 किलोमीटर की दूरी पर पाली जिले के सादड़ी में स्थित है।
मानसून के दौरान स्वर्ग से सुंदर दिखता है बांसवाड़ा का चाचाकोटा।
हरियाली से लथपथ बांसवाड़ा राजस्थान के दक्षिणी हिस्से में बसा हुआ है। जहां प्राकृतिक सौंदर्य के साथ माही नदी का लगभग 40 किलोमीटर का क्षेत्र बांसवाड़ा की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। इसके साथ ही माही के बैकवाटर में 107 से ज्यादा छोटे-बड़े टापू बांसवाड़ा की पहचान बन चुके हैं। जहां आज भी आदिवासी अंचल के लोग प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
राजस्थान की सबसे खूबसूरत बावड़ी है दौसा की चांद बावड़ी।
दौसा की चांद बावड़ी दुनिया की सबसे गहरी बावड़ियों में से एक है। जो लगभग 35 मीटर चौड़ी है। इस बावड़ी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं। इसमें पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, आसानी से भरा जा सकता है। 13 मंजिला यह बावड़ी 100 फीट से भी ज्यादा गहरी है। इसमें भूलभुलैया के रूप में 3500 सीढियां हैं।
दुनियाभर के पर्यटक सैंड ड्यून्स विलेज देखने पहुंचते हैं नागौर।
नागौर का खींवसर सैंड ड्यून्स विलेज राजस्थान के साथ देश भर के पर्यटकों की पसंद है। रेगिस्तान के बीच पानी का एक छोटा सा तालाब और चारों तरफ खेजड़ी के पौधों के बीच बनी झोपड़ियां काफी आकर्षक और मनमोहक लगती है।
करौली में 160 फीट ऊंचाई से गिरता है झरना।
करौली से 50 किमी दूरी पर करणपुर क्षेत्र का प्रसिद्ध महेश्वरा धाम आस्था का केन्द्र होने के साथ यहां पर्यटन का केन्द्र बिंदु भी बना हुआ है। राजस्थान में 160 फुट ऊंचाई से गिरने वाला यह तीसरे नंबर का झरना है। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित महेवरा धाम बीहड़ जंगलों में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए खिजूरा गांव से कच्चा रास्ता बना हुआ है और जंगली जानवरों की शरण स्थली व गुफाएं भी बनी हुई हैं।
राजस्थान में सबसे ज्यादा बाघ सवाई माधोपुर के रणथंभौर में करते हैं विचरण।
राजस्थान में सवाई माधोपुर जिले का रणथंभौर नेशनल पार्क बाघों के लिए जाना जाता है। रणथंभौर नेशनल पार्क 1334 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इस नेशनल पार्क के एक तरफ बनास नदी है और दूसरी तरफ चंबल नदी। यहीं, पहाड़ी पर एक सिद्ध गणेश मंदिर है, जहां तक पैदल ही जाया जाता है। इस पूरे नेशनल पार्क में करीब 72 बाघ रहते हैं।
रानी पद्मावती के जौहर के लिए देश दुनिया में पहचाना जाता है चित्तौड़गढ़ का किला।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के किले को न सिर्फ राजस्थान का गौरव माना जाता है, बल्कि यह भारत के सबसे विशालकाय किलों में से भी एक है, जिसका निर्माण 7वीं शताब्दी में मौर्य शासकों ने किया था। करीब 700 एकड़ की जमीन में फैला यह विशाल किला अपनी भव्यता, आर्कषण और सौंदर्य की वजह से साल 2013 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है।
राजस्थान के रेगिस्तान की परिकल्पना को साकार करते हैं महाबार के धोरों।
बाड़मेर जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित प्रसिद्ध महाबार के धोरों का है। गर्मी के दिनों में चलने वाली तेज हवाओं में यहां रेत के झरने देखने को मिलते हैं, जब हवा की स्पीड 30 से 40 किमी होती है।
जालौर में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र तोपखाना पहले संस्कृत विद्यालय हुआ करता था।
तोपखाना जालोर शहर के मध्य में स्थित है जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र भी है। यह तोपखाना कभी एक भव्य संस्कृत विद्यालय था। जिसे राजा भोज ने 7 वीं और 8 वीं शताब्दी के बीच बनवाया था। राजा भोज एक बहुत बड़े संस्कृत के एक विद्वान थे और उन्होंने शिक्षा प्रदान करने के लिए अजमेर और धार में कई समान स्कूल बनाए हैं। देश के स्वतंत्र होने से पहले जब अधिकारियों इस स्कूल का इतेमाल गोला-बारूद के भंडारण के उपयोग किया था। तो इसका नाम तोपखाना रख दिया गया था।
हर्ष पर्वत पर बिजली उत्पादन करने के लिए लगाई गई हैं पवन चक्कियां।
शेखावाटी के सीकर से 16 किमी दूर दक्षिण में हर्ष पर्वत स्थित है जो अरावली पर्वत शृंखला का भाग है। यह पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक व पुरातत्व की दृष्टि से प्रसिद्ध, सुरम्य प्राकृतिक स्थल है। हर्ष पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 3100 फीट है। जो राजस्थान के सर्वोच्च स्थान आबू पर्वत से कुछ कम है।
राजस्थान में सबसे अधिक पर्यटक आमेर महल को देखने पहुंचते हैं जयपुर।
जयपुर का आमेर महल अपनी अनोखी बनावट के साथ ऐतिहासिक इतिहास को समेटे हुए हैं जिस वजह से हर साल लाखों की संख्या में सैलानी भारत सिर्फ आमेर महल देखने पहुंचते हैं। सावन के दौरान आमिर महल का नजारा और भी खूबसूरत हो जाता है। अरावली पर्वत शृंखला के बीच बने इस महल के चारों और पहाड़ियां हरियाली की चादर ओढ़ लेती हैं।
मानसून के दौरान और ज्यादा खूबसूरत हो जाता है गागरोन का किला।
झालावाड़ का गागरोन किला एक पहाड़ी और पानी के किले का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसे नींव का गढ़ भी कहते हैं । यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल होने के लिए राजस्थान के छह पहाड़ी किलों में से एक है। तीन तरफ आहू, काली और सिंध नदियों के शांत पानी से घिरा यह किला वास्तव में देखने लायक है।
माउंट आबू के गुरु शिखर से सनराइज और सनसेट देखने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं सैलानी।
राजस्थान के सिरोही जिले का माउंट आबू प्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन है। जहां न सिर्फ राजस्थान बल्कि देशभर से पर्यटक प्राकृतिक खूबसूरती का लुफ्त उठाने के लिए पहुंचते हैं।
मानसून में हजारों की संख्या में झरना देखने पहुंचते हैं पर्यटक।
मेनाल का झरना भीलवाड़ा जिले के लाडपुरा कस्बे के पास पत्थर की खदानों के बीच बसे छोटे से गांव बूंदी में है। यह झरना पूरी तरह से प्राकृतिक है। यहां 7 झरने एक साथ बहते हैं। ऐतिहासिक महानाल मंदिर भी है, जो खजुराहो के मंदिर की याद दिलाता है।
रात में सोने सा चमकता है जैसलमेर का किला।
राजस्थान के जैसलमेर में 1156 ई. में बने सोनार किले की गिनती दुनिया के सबसे बड़े किलों में होती है। इस किले में चारों ओर 99 गढ़ बने हुए हैं। अपनी बेजोड़ स्थापत्य कला, शिल्प और नक्काशी के चलते राजपूताना-संस्कृति में यह अपना अहम स्थान रखता है। त्रिकुरा पहाड़ी पर इस किले का निर्माण एक भाटी राजपूत शासक जैसल ने कराया। इस किले में कई खूबसूरत हवेलियां, मकान, मंदिर हैं।
देशभर में भूतों के किले के नाम से मशहूर है भानगढ़।
राजस्थान के अलवर जिले में स्थित भानगढ़ किला दहशत का दूसरा नाम है। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर में भूत प्रेत का साया है। दूर दराज से बड़े पैमाने पर लोग यहां घूमने के लिए आते हैं पर रात रुकने की साहस आज तक किसी व्यक्ति ने नहीं किया है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां पर रात को पायल और घुंघरू की आवाज सुनाई देती है। भानगढ़ का नाम सुनते ही लोगों के दिल में दहशत की घंटी बजने लगती है। इस किले का निर्माण 15वी या 16वीं शताब्दी में किया गया था।
धौलपुर में कई मवेशियों को अपना शिकार बना चुके हैं मगरमच्छ और घड़ियाल।
राजस्थान के धौलपुर की चंबल सफारी देशभर में काफी प्रसिद्ध हो चुकी है। यहां सैलानी बड़ी संख्या में विदेशी पक्षियों के साथ घड़ियाल, मगरमच्छ और कछुए को आसानी से निहार सकते हैं।
ढाई दिन की झोपड़ी में पहले पढ़ाया जाता था संस्कृत का पाठ।
ढाई दिन का झोंपड़ा 1192 ईस्वी में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। असल में इस जगह पर एक बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय (स्कूल) और मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था। ढाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिस पर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है।
देश में सिर्फ प्रतापगढ़ के सीता माता सेंचरी में दिखाई देती है उड़न गिलहरी।
राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले की सीता माता सेंचुरी अपनी उड़न गिलहरी की वजह से दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है। सीता माता अभ्यारण के जंगलों में दुर्लभ उड़न गिलहरी आसानी से देखी जा सकती है। जो न सिर्फ चलती है, बल्कि हवा में भी उड़ती है।
देशभर के प्रेमी जोड़े मन्नत मांगने आते हैं श्रीगंगानगर।
लैला-मजनू की मजार श्रीगंगानगर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है जो अनूपगढ़ शहर से लगभग 11 किलोमीटर दूर बिंजौर गांव में स्थित है। इस मकबरे के बारे में कहा जाता है कि इस मकबरे का संबध प्रेमी लैला और मजनू से है। बताया जाता है कि लैला और मजनू सिंध से ताल्लुक रखते थे, जो लैला के माता-पिता और उसके भाई से बचने के लिए यहां बस गए थे, क्योंकि वे सभी लैला-मजनू के प्रेम के खिलाफ थे। लेकिन जब लीला मजनू की मृत्यु हो गई तो उन दोनों के इस जगह पर दफना दिया गया था, जिसे आज लैला-मजनू की मजार के रूप में जाना जाता है। लैला-मजनू का मकबरा आज शाश्वत प्रेम का प्रतीक बन गया है और दूर-दूर से प्रेमी जोड़े यहां आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।
बारां के सोरसन अभ्यारण में बड़ी संख्या में काले हिरण मौजूद है।
राजस्थान के बारां का सोरसन घास मैदान के नाम से प्रचलित है। यह एक पक्षी अभ्यारण्य भी है, जो कि 41 वर्ग कि.मी. के दायरे में फैला है। यहाँ झाड़ीदार वनस्पतियाँ, विविध पक्षी, पशुओं की प्रजातियाँ, जल निकाय, तीतर, बटेर, ऑरियॉल्स, रॉबिन, हंस, बत्तखें और अद्भुत पक्षियों के झुण्ड भी दिखाई देते हैं। सर्दी के मौसम में यहाँ प्रवासी पक्षी भी जैसे फ्लाई कैचर, मैना आदि के समूह उड़ते नज़र आते हैं। काले हिरण और बारहसिंगा हिरण भी यहाँ देखे जा सकते हैं।
बीकानेर की भुजिया और रसगुल्ले दुनियाभर में मशहूर है।
राजस्थान का बीकानेर देशभर में अपनी अनोखी हवेलियों की वजह से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि बीकानेर में हजार से ज्यादा हवेलियां हैं। जो अब बिल्डिंग्स में तब्दील हो गई है। आज भी देश दुनिया के लोग इन खूबसूरत हवेलियों को देखने बीकानेर पहुंचते हैं।
दुनियाभर में वेडिंग डेस्टिनेशन के तौर पर पहचान बना चुका है उदयपुर।
लेकसिटी उदयपुर देश-दुनिया में अपनी झीलों के लिए प्रसिद्ध है। हर साल लाखों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक उदयपुर की झीलों को निहारने पहुंचते हैं। जिस वजह से यहां की होटल इंडस्ट्री भी भारत में अपनी अलग पहचान बना चुकी है।
भरतपुर बर्ड सेंचुरी में पक्षियों की 230 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।
भरतपुर का केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान जिसे पहले भरतपुर बर्ड सेंचुरी के नाम से जाना जाता है। यह भारत का एक प्रसिद्ध पक्षी अभयारण्य है, जो हजारो प्रवासी पक्षियों की मेजबानी करता है। इस पार्क में पक्षियों की 230 से अधिक प्रजातियां पाई जाती है। केवलादेव राष्ट्रीय पार्क, भारत का एक प्रमुख पर्यटन केंद्र भी है, इस जगह को 1971 में एक संरक्षित अभयारण्य बनाया गया था। केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान एक विश्व धरोहर स्थल भी है। यह पार्क यहां आने वाले पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है।
भटनेर किले को हनुमानगढ़ किला भी कहा जाता है। सूरत सिंह ने यह किला भाटियों से जीता था।
राजस्थान के हनुमानगढ़ में आज से करीब 1735 साल पहले यानी 285 ईस्वी में भाटी वंश के राजा भूपत सिंह ने इस किले का निर्माण करवाया था। इसलिए इसका नाम ‘भटनेर किला’ पड़ा। इस किले को हनुमानगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि साल 1805 में बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने यह किला भाटियों से जीत लिया था। उस दिन मंगलवार था और चूंकि मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है। इसलिए इसका नाम हनुमानगढ़ रखा गया।
स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है डूंगरपुर का देव सोमनाथ मंदिर।
डूंगरपुर के देव गांव में सोम नदी के किनारे बसा देव सोमनाथ मंदिर है। यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। खासियत है कि यह मंदिर 108 खंभों पर टिका है। जो मिट्टी और चूने से जुड़े हैं। इसके बाद भी मंदिर पर भूकंप बेअसर होता है। मंदिर का नाम गांव के देव और यहां से निकलने वाली सोम नदी से देव सोमनाथ पड़ा। मंदिर में हजार साल से भी अधिक पुराने शिवलिंग की पूजा होती है। कहते हैं कि 12वीं सदी में राजा अमृतपाल देव ने इसका निर्माण कराया था। तीन मंजिला मंदिर को खड़ा रखने के लिए तब 108 खंभे बनाए गए थे।
मान्यताओं के अनुसार भीमलत के झरने के आसपास पर पांडवों ने वनवास काटा था।
बूंदी से 30 किमी दूर भीमलत का सुंदर झरना अद्वितीय है। ऐसा बताया जाता है कि बनवास के दौरान पाण्डव यहां आए थे। इस स्थल पर बना शिवमंदिर पूज्य है। मानसून में इन दोनों जलप्रपातों पर सैलानियों का जमघट लगा रहता है।
चूरू में जलापूर्ति के लिए बनाया गया था सेठानी का जोहरा।
चूरू से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित सेठानी का जोहरा एक बहुत ही शानदार स्थानों में से एक हैं जो कि सबसे ज्यादा देखे जाने वाले स्थलों में से एक है। इस किले को भगवान दास बागला की विधवा ने बनवाया था। यहां पर 1956 के दौरान एक भयानक अकाल आया था जिसके बाद था पर एक जलाशय बनवाया गया था।
सुनहरी कोठी के दीवारों को सोने से सजाया गया है।
टोंक में स्थित सुनहरी कोठी राजस्थान की सुंदर हवेलियों में से एक है। यह टोंक-स्वाई माधोपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण नवाब मोहम्मद इब्राहिम अली ख़ान द्वारा कराया गया था। सुनहरी कोठी शीश महल के नाम से अधिक लोकप्रिय है, इसकी सुंदरता अनेक पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। हवेली की भीतरी दीवारों पर सोने के रंग से पुताई की गई है और कांच व रत्नों से सजावट हुई है।राजस्थान सरकार ने इसे ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है।
मेड़तानी की बावड़ी में कई बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है।
राजस्थान के झुंझुनू में स्थित मेड़तनी की बावड़ी प्राचीन, सुन्दर और कलात्मक है। इस विशाल एवं वास्तुकला की दृष्टि से संपन्न व अनुपम बावड़ी का निर्माण झुंझुनू के हिन्दू शासक शार्दुल सिंह शेखावत की रानी मेड़तनी जी ने सन 1783 ईसवी में करवाया था। जिस कारण इसे मेड़तनी की बावड़ी के नाम से जाना जाता हैं।
कुंभलगढ़ किले की दीवार 38 किलोमीटर तक फैली हुई है।
कुम्भलगढ़ किला राजसमंद में स्थित है। यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साईट है, जो राजस्थान की पहाडियों में स्थित है। इसका निर्माण 15 वी शताब्दी में राणा कुम्भ ने किया था, कुम्भलगढ़ महान शासक महाराणा प्रताप की जन्मभूमि भी है। किले की 38 किलोमीटर की दीवार के साथ, यह किला ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना के बाद यह सबसे विशाल दीवार वाला दूसरा किला है।
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